सपनों के पंख नहीं होते ,गर होते तो मेरे आखों में ना सजते
सजते पर अधूरे ना होते ,पंख के साथ उनकी मंजिल तक पहुँचते
सपनों के पंख कट गए मेरी मर्यादों के धार से ....
मर्यादों की धार जो काट ना सकी समाज की तलवार को
सजते पर अधूरे ना होते ,पंख के साथ उनकी मंजिल तक पहुँचते
सपनों के पंख कट गए मेरी मर्यादों के धार से ....
मर्यादों की धार जो काट ना सकी समाज की तलवार को